रंगमंच की दुनिया की एक नई और ज़रूरी पत्रिका 'रंग संवाद'

Share वनमाली सृजन पीठ,भोपाल की सम्वाद पत्रिका के रूप में 'रंग संवाद' नामक त्रैमासिक पत्रिका ने अपने कुछ अंकों में ही भुत 'रंग संवाद' ने गहरी प्रवृति का काम करके दिखाया है. ख़ास तौर पर रंगमंच की दुनिया के आलेखों और ख़बरों को समेकित रूप प्रदान करती हुए ये पत्रिका पाठकों के बीच बहुत गहरी पेठ बना चुकी है. अभीतक पत्रिका का कोई शुल्क नियत नहीं किया है शायद ये पीठ द्वारा ही फिलहाल संचालित की जा रही है .ये अंक हाल ही निकला अप्रैल-जून अंक है.जिसे प्रख्यात रंगकर्मी बादल सरकार,फिल्म निर्माता मणि कॉल,'जनता पागल हो गयी है' के रचियता कामरेड शिवराम,प्रगतिशील पत्रिका वसुधा के सम्पादक कमला प्रसाद और फिल्म  निर्माता और चित्रकार मक़बूल फ़िदा हुसैन को समर्पित करके निकला गया है. आवरण चित्र से ही आकर्षित करने वाला ये अंक आखिर...

‘‘मैं समर्पण रियाज़ और गुरू पंरपरा के उसी आदर्श की पुनर्प्रतिष्ठा करना चाहता हूं''-ध्रुपद गायक आशीष सांस्कृत्यायन

Share आशीष सांस्कृत्यायन जी  दौलत की दुहाई देने वाले अनेक पश्चिमी मुल्कों में आज हिन्दुस्तानी ध्रुपद संगीत बेचैन और बुझे दिलों के लिए सुकून का मरहम बन गया है। लेकिन जीवन के जिस आध्यात्मिक आनंद की तलाश में आज पराए वतन के वाशिंदों का कारवां चल निकला है, हमारा भारतीय मानस अभी उससे कोसों दूर है। इसी सन्नाटे को भरने का संकल्प लेकर युवा संगीतकारों के बीच रहने का मैंने मन बनाया है। ध्रुपद केन्द्र का गुरू बनकर मैं एक अर्थ में अपने ‘गुरू ऋण’ की अदायगी ही करूंगा।  इस कृतज्ञता और उम्मीद भरे वक्तव्य के साथ अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ध्रुपद गायक आशीष सांस्कृत्यायन ने लगभग दो दशकों बाद अपनी गुरू भूमि (मध्यप्रदेश) में आमद दर्ज की है। ध्रुपद की वैश्विक छवि और भारतीय मानस से जुड़े अनेक पहलुओं पर आशीष ने इस लेखक के साथ लम्बी बातचीत में...

रंग विमर्श:अस्सी पारते पं. शंकर होम्बल संजोएँ हैं खुद में स्मृतियों की अपार सम्पदा

इच्छाशक्ति के मंत्र का जाप करते हुए इस कलासाधक ने अंततः साबित कर दिया था कि कला के लिए हदों का कोई मायना नहीं है। वह समूचे विश्व में कहीं भी अपनी सुगंध, अपना पराग बिखेर सकती है। धारवाड़ (कर्नाटक) के समीप एक शैव किसान परिवार में जन्में शंकर होम्बल ने अपने कला जीवन के चढ़ते सोपानों के साथ मध्य भारत को भरतनाट्यम का जो गौरव दिया वह इसी मायने में अद्धितीय है।   पंडित होम्बल की एक सौम्य छवि अहिंदी भाषी परिवार और परिवेश से ताल्लुक रखते हुए भी हिंदी के प्रदेश में भरतनाट्यम नृत्य शैली का प्रचार-प्रसार कर नई पीढ़ी को अपनी थाती सौंपने वाले वे अपने किस्म के अकेले नृत्य गुरू थे। पिछले पांच दशक में उनका सांस्कृतिक पुरूषार्थ दर्जनों शिष्यों के लिए भरतनाट्यम नृत्य शैली की प्रेरणा का प्रतीक बना। निश्चय ही उम्र की चढ़ती बेल ने उनकी देह को भी थका दिया...

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